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श्लोक 1.17.16  |
তবে নিত্যানন্দ-গোসাঞির ব্যাস-পূজন
নিত্যানন্দাবেশে কৈল মুষল ধারণ |
तबे नित्यानन्द - गोसाञि र व्यास - पूजन ।
नित्यानन्दावेशे कैल मुषल धारण ॥16॥ |
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अनुवाद |
तब नित्यानन्द प्रभु ने भगवान् श्री गौरसुन्दर की व्यास-पूजा, यानी आध्यात्मिक गुरु की पूजा कराने का प्रबन्ध किया। किन्तु श्री चैतन्य महाप्रभु ने नित्यानन्द प्रभु के भाव में आकर मुसल धारण कर लिया। |
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