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श्लोक 1.17.148  |
গ্রাম-সম্বন্ধে ‘চক্রবর্তী’ হয মোর চাচা
দেহ-সম্বন্ধে হৈতে হয গ্রাম-সম্বন্ধ সাঙ্চা |
ग्राम - सम्बन्धे ‘चक्रवर्ती’ हय मोर चाचा ।
देह - सम्बन्धे हैते हय ग्राम - सम्बन्ध साँचा ॥148॥ |
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अनुवाद |
"गाँव के रिश्ते के अनुसार, नीलाम्बर चक्रवर्ती ठाकुर मेरे चाचा थे। इस तरह का नाता रक्त के रिश्ते से भी ज़्यादा मज़बूत होता है।" |
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