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श्लोक 1.17.141  |
কীর্তনের ধ্বনিতে কাজী লুকাইল ঘরে
তর্জন গর্জন শুনি’ না হয বাহিরে |
कीर्तनेर ध्वनिते काजी लुकाइल घरे ।
तर्जन गर्जन शुनि’ ना हय बाहिरे ॥141॥ |
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अनुवाद |
हरे कृष्ण मंत्र के कीर्तन की तेज ध्वनि से काजी बहुत डर गया और वह अपने कमरे में छिप गया। लोगों को विरोध करते और बड़े गुस्से में बुदबुदाते सुनकर काजी अपने घर से बाहर नहीं निकला। |
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