श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ » श्लोक 14 |
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| | श्लोक 1.17.14  | তবে চতুর্-ভুজ হৈলা, তিন অঙ্গ বক্র
দুই হস্তে বেণু বাজায, দুযে শঙ্খ-চক্র | तबे चतुर्भुज हैला, तिन अङ्ग वक्र ।
दुइ हस्ते वेणु बाजाय, दुये शङ्ख - चक्र ॥14॥ | | अनुवाद | तत्पश्चात, भगवान ने उसे अपना चार भुजाओं वाला रूप दिखाया, जो तीन-घुमावदार मुद्रा में खड़ा था। उन्होंने अपने दो हाथों में बांसुरी बजा रखी थी और अन्य दो हाथों में शंख तथा चक्र रखे थे। | | |
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