श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ  »  श्लोक 138
 
 
श्लोक  1.17.138 
বৃন্দাবন-দাস ইহা ‘চৈতন্য-মঙ্গলে’
বিস্তারি’ বর্ণিযাছেন, প্রভু-কৃপা-বলে
वृन्दावन - दास इहा ‘चैतन्य - मङ्गले’ ।
विस्ता रि’ वर्णियाछेन, प्रभु - कृपा - बले ॥138॥
 
अनुवाद
प्रभु की कृपा से श्रील वृंदावन दास ठाकुर ने इस घटना का विस्तारपूर्वक वर्णन अपने चैतन्य मंगल (अब चैतन्य भागवत) में प्रस्तुत किया है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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