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श्लोक 1.17.127  |
কেহ কীর্তন না করিহ সকল নগরে
আজি আমি ক্ষমা করি’ যাইতেছোঙ্ ঘরে |
केह कीर्तन ना करिह सकल नगरे ।
आजि आमि क्षमा क रि’ याइतेछों घरे ॥127॥ |
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अनुवाद |
“शहर के रास्तों में कोई व्यक्ति संकीर्तन नहीं करेगा। ठीक है, आज मैं इस गुनाह को माफ करके घर वापस जा रहा हूँ।” |
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