श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ  »  श्लोक 127
 
 
श्लोक  1.17.127 
কেহ কীর্তন না করিহ সকল নগরে
আজি আমি ক্ষমা করি’ যাইতেছোঙ্ ঘরে
केह कीर्तन ना करिह सकल नगरे ।
आजि आमि क्षमा क रि’ याइतेछों घरे ॥127॥
 
अनुवाद
“शहर के रास्तों में कोई व्यक्ति संकीर्तन नहीं करेगा। ठीक है, आज मैं इस गुनाह को माफ करके घर वापस जा रहा हूँ।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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