श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ » श्लोक 114 |
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| | श्लोक 1.17.114  | যে হও, সে হও তুমি, তোমাকে নমস্কার
প্রভু তারে প্রেম দিযা কৈল পুরস্কার | ये हओ, से हओ तुमि, तोमाके नमस्कार ।
प्रभु तारे प्रेम दिया कैल पुरस्कार ॥114॥ | | अनुवाद | सर्वज्ञ ज्योतिषी ने निष्कर्ष निकाला, "आप जो भी और जो कुछ भी हैं, मैं आपके चरणों में नतमस्तक हूं!" तब प्रभु ने अपनी अहैतुकी कृपा से उन्हें भगवत्प्रेम प्रदान किया, जिससे उनकी सेवा का प्रतिफल उन्हें प्राप्त हुआ। | | |
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