श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 16: महाप्रभु की बाल्य तथा कैशोर लीलाएँ  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  1.16.55 
‘অবিমৃষ্ট-বিধেযাṁশ’ — দুই ঠাঞি চিহ্ন
‘বিরুদ্ধ-মতি’, ‘ভগ্ন-ক্রম’, ‘পুনর্-আত্ত’, — দোষ তিন
‘अविमृष्ट - विधेयांश - दुइ ठाजि चिह्न ।
‘विरुद्ध - मति’, ‘भग्न - क्रम’, ‘पुनरात्त’, दोष तिन ॥55॥
 
अनुवाद
इस श्लोक में अविमृष्ट विधेयांश दोष दो बार हुआ है और विरुद्धमति, भग्नक्रम तथा पुनरात्त दोष एक - एक बार हुआ है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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