श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 16: महाप्रभु की बाल्य तथा कैशोर लीलाएँ  »  श्लोक 110
 
 
श्लोक  1.16.110 
চৈতন্য-গোসাঞির লীলা — অমৃতের ধার
সর্বেন্দ্রিয তৃপ্ত হয শ্রবণে যাহার
चैतन्य - गोसाञि र लीला - अमृतेर धार ।
सर्वेन्द्रिय तृप्त हय श्रवणे याहार ॥110॥
 
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का अमृत हर किसी के सुनने वाले की इन्द्रियों को तृप्त कर देने वाला है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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