श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 16: महाप्रभु की बाल्य तथा कैशोर लीलाएँ  »  श्लोक 103
 
 
श्लोक  1.16.103 
শৈশব-চাপল্য কিছু না লবে আমার
শিষ্যের সমান মুঞি না হঙ্ তোমার
शैशव - चापल्य किछु ना लबे आमार ।
शिष्येर समान मुञि ना हँ तोमार ॥103॥
 
अनुवाद
"मैं आपका शिष्य बनने लायक भी नहीं हूँ। इसलिए कृपया मैंने जो कुछ भी बचकाना दुस्साहस दिखाया है, उसे बुरा न माने।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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