श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 15: महाप्रभु की पौगण्ड-लीलाएँ  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  1.15.26 
গৃহিণী বিনা গৃহ-ধর্ম না হয শোভন
এত চিন্তি’ বিবাহ করিতে হৈল মন
गृहिणी विना गृह - धर्म ना हय शोभन ।
एत चि न्ति’ विवाह करते हैल मन ॥26॥
 
अनुवाद
चैतन्य महाप्रभु ने विचार किया, "बिना पत्नी के गृहस्थ जीवन का कोई अर्थ नहीं है।" अतः उन्होंने विवाह करने का निर्णय लिया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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