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श्लोक 1.15.26  |
গৃহিণী বিনা গৃহ-ধর্ম না হয শোভন
এত চিন্তি’ বিবাহ করিতে হৈল মন |
गृहिणी विना गृह - धर्म ना हय शोभन ।
एत चि न्ति’ विवाह करते हैल मन ॥26॥ |
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अनुवाद |
चैतन्य महाप्रभु ने विचार किया, "बिना पत्नी के गृहस्थ जीवन का कोई अर्थ नहीं है।" अतः उन्होंने विवाह करने का निर्णय लिया। |
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