श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 15: महाप्रभु की पौगण्ड-लीलाएँ » श्लोक 25 |
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| | श्लोक 1.15.25  | কত দিনে প্রভু চিত্তে করিলা চিন্তন
গৃহস্থ হ-ইলাম, এবে চাহি গৃহ-ধর্ম | कत दिने प्रभु चित्ते करिला चिन्तन ।
गृहस्थ हइलाम, एबे चाहि गृह - धर्म ॥25॥ | | अनुवाद | कुछ दिनों पश्चात् भगवान विचार करने लगे, “मैंने संन्यास नहीं लिया और घर में रहकर रहने के कारण गृहस्थ के समान कर्म करना मेरा कर्तव्य है।” | | |
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