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श्लोक 1.15.20  |
গৃহস্থ হ-ইযা করিব পিতা-মাতার সেবন
ইহাতে-ই তুষ্ট হবেন লক্ষ্মী-নারাযণ |
गृहस्थ हइया करिब पिता - मातार सेवन ।
इहाते - इ तुष्ट हबेन लक्ष्मी - नारायण ॥20॥ |
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अनुवाद |
'बाद में मैं एक गृहस्थ बनूंगा और इस प्रकार अपने माता-पिता की सेवा करूँगा, क्योंकि यह क्रिया भगवान नारायण और उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी को बहुत संतुष्ट करेगी।' |
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