श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 15: महाप्रभु की पौगण्ड-लीलाएँ  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  1.15.20 
গৃহস্থ হ-ইযা করিব পিতা-মাতার সেবন
ইহাতে-ই তুষ্ট হবেন লক্ষ্মী-নারাযণ
गृहस्थ हइया करिब पिता - मातार सेवन ।
इहाते - इ तुष्ट हबेन लक्ष्मी - नारायण ॥20॥
 
अनुवाद
'बाद में मैं एक गृहस्थ बनूंगा और इस प्रकार अपने माता-पिता की सेवा करूँगा, क्योंकि यह क्रिया भगवान नारायण और उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी को बहुत संतुष्ट करेगी।'
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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