श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 13: श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव » श्लोक 98 |
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| | श्लोक 1.13.98  | নদীযা-উদযগিরি, পূর্ণচন্দ্র গৌরহরি,
কৃপা করি’ হ-ইল উদয
পাপ-তমঃ হৈল নাশ, ত্রি-জগতের উল্লাস,
জগভরি’ হরি-ধ্বনি হয | नदीया - उदयगिरि, पूर्णचन्द्र गौरहरि
कृपा करि’ हइल उदय ।
पाप - तमः हैल नाश, त्रि - जगतेर उल्लास
जगभरि’ हरि - ध्वनि हय ॥98॥ | | अनुवाद | इस प्रकार अपनी अहैतुकी कृपा से पूर्णचन्द्र रूपी गौरहरि ने नदिया जिले में अवतार लिया, जिसकी तुलना उस उदयगिरि से की जाती है जहाँ सूर्य सर्वप्रथम दृष्टिगोचर होता है। उनके आकाश में उदय होने से पापमय जीवन का अंधकार दूर हो गया और तीनों लोक हर्षित होकर भगवान के पवित्र नाम का जप करने लगे। | | |
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