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श्लोक 97
श्लोक
1.13.97
প্রসন্ন হৈল দশ দিক্, প্রসন্ন নদীজল
স্থাবর-জঙ্গম হৈল আনন্দে বিহ্বল
प्रसन्न हैल दश दिक, प्रसन्न नदीजल ।
स्थावर - जङ्गम हैल आनन्दे विह्वल ॥97॥
अनुवाद
इस प्रकार के वातावरण में दशों दिशाएँ प्रमुदित हो उठीं और नदियों की लहरें भी उसी प्रकार मचलने लगीं। साथ ही सारे चर और अचर प्राणी दिव्य आनंद से अभिभूत हो उठे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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