श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 13: श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव » श्लोक 44 |
|
| | श्लोक 1.13.44  | অনন্ত চৈতন্য-লীলা ক্ষুদ্র জীব হঞা
কে বর্ণিতে পারে, তাহা বিস্তার করিযা | अनन्त चैतन्य - लीला क्षुद्र जीव हञा ।
के वर्णिते पारे, ताहा विस्तार करिया ॥44॥ | | अनुवाद | श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाएँ अनन्त हैं। एक क्षुद्र जीव उन दिव्य लीलाओं का वर्णन करने में कितना ही प्रयास क्यों न कर लें, वह उनका पूर्ण विस्तार नहीं कर सकता। | | |
| ✨ ai-generated | |
|
|