श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 13: श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  1.13.40 
রাত্রি-দিবসে কৃষ্ণ-বিরহ-স্ফুরণ
উন্মাদের চেষ্টা করে প্রলাপ-বচন
रात्रि - दिवसे कृष्ण - विरह - स्फुरण ।
उन्मादेर चेष्टा करे प्रलाप - वचन ॥40॥
 
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु को कृष्ण के विरह ने दिन-रात सताया। विरह के चिह्नों को प्रकट करते हुए, वे दयनीय आवाज़ में पुकारते और पागल की तरह बकते रहते।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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