श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 13: श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  1.13.37 
এই ‘মধ্য-লীলা’ নাম — লীলা-মুখ্যধাম
শেষ অষ্টাদশ বর্ষ — ‘অন্ত্য-লীলা’ নাম
एइ ‘मध्य - लीला’ नाम - लीला - मुख्यधाम ।
शेष अष्टादश वर्ष - ‘अन्त्य - लीला’ नाम ॥37॥
 
अनुवाद
चैतन्य महाप्रभु के संन्यास ग्रहण करने के बाद उनकी यात्रा के दौरान के कार्यकलाप ही उनकी मुख्य लीलाएँ हैं। शेष अठारह वर्षों के उनके कार्यकलापों को अन्त्य-लीला कहते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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