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श्लोक 1.13.32  |
নগরে নগরে ভ্রমে কীর্তন করিযা
ভাসাইল ত্রি-ভুবন প্রেম-ভক্তি দিযা |
नगरे नगरे भ्रमे कीर्तन करिया ।
भासाइल त्रिभुवन प्रेम - भक्ति दिया ॥32॥ |
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अनुवाद |
जैसे-जैसे प्रभु सर्वत्र घूम-घूम कर कीर्तन करते रहे, वैसे-वैसे ही संकीर्तन आंदोलन नगर के एक छोर से दूसरे छोर तक बढ़ता गया। इस तरह भगवत्प्रेम का वितरण कर उन्होंने सारे विश्व को आनंदित कर दिया। |
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