श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 13: श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  1.13.32 
নগরে নগরে ভ্রমে কীর্তন করিযা
ভাসাইল ত্রি-ভুবন প্রেম-ভক্তি দিযা
नगरे नगरे भ्रमे कीर्तन करिया ।
भासाइल त्रिभुवन प्रेम - भक्ति दिया ॥32॥
 
अनुवाद
जैसे-जैसे प्रभु सर्वत्र घूम-घूम कर कीर्तन करते रहे, वैसे-वैसे ही संकीर्तन आंदोलन नगर के एक छोर से दूसरे छोर तक बढ़ता गया। इस तरह भगवत्प्रेम का वितरण कर उन्होंने सारे विश्व को आनंदित कर दिया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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