श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 13: श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव  »  श्लोक 124
 
 
श्लोक  1.13.124 
শ্রী-চৈতন্য-নিত্যানন্দ, আচার্য অদ্বৈতচন্দ্র,
স্বরূপ-রূপ-রঘুনাথদাস
ইঙ্হা-সবার শ্রী-চরণ, শিরে বন্দি নিজ-ধন,
জন্ম-লীলা গাইল কৃষ্ণদাস
श्री - चैतन्य - नित्यानन्द, आचार्य अद्वैतचन्द्र
स्वरूप - रूप - रघुनाथदास ।
इँहा - सबार श्री - चरण, शिरे वन्दि निज - धन
जन्म - लीला गाइल कृष्णदास ॥124॥
 
अनुवाद
मैंने, कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने, श्री चैतन्य महाप्रभु, नित्यानन्द प्रभु, आचार्य अद्वैतचन्द्र, स्वरूप दामोदर, रूप गोस्वामी तथा रघुनाथ दास गोस्वामी के चरणकमलों को अपनी सम्पत्ति जानकर और अपने सिर पर धारण करके श्री चैतन्य महाप्रभु के आविर्भाव का कथन किया है।
 
 
इस प्रकार श्री चैतन्य-चरितामृत, आदि लीला, के अंतर्गत तेरहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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