श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 13: श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव » श्लोक 123 |
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| | श्लोक 1.13.123  | পাইযা মানুষ জন্ম, যে না শুনে গৌর-গুণ,
হেন জন্ম তার ব্যর্থ হৈল
পাইযা অমৃতধুনী, পিযে বিষ-গর্ত-পানি,
জন্মিযা সে কেনে নাহি মৈল | पाइया मानुष जन्म, ये ना शुने गौर - गुण
हेन जन्म तार व्यर्थ हैल ।
पाइया अमृतधुनी, पिये विष - गर्त - पानि
जन्मिया से केने नाहि मैल ॥123॥ | | अनुवाद | जो मनुष्य का शरीर पाकर भी श्री चैतन्य महाप्रभु की भक्ति नहीं करता, वह अपने अवसर को गँवा देता है। अमृतधुनी भक्ति रूपी अमृत की प्रवाहमान नदी है। अगर मनुष्य शरीर पाने के बाद ऐसी नदी के पानी को पीने के बजाय भौतिक सुख रूपी विषैले गड्ढे का पानी पीता है, तो उसके लिए न जीना ही बेहतर होता, बल्कि बहुत पहले मर जाना ही अच्छा होता। | | |
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