श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 13: श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव  »  श्लोक 122
 
 
श्लोक  1.13.122 
ঐছে প্রভু শচী-ঘরে, কৃপায কৈল অবতারে,
যেই ইহা করযে শ্রবণ
গৌর-প্রভু দযাময, তাঙ্রে হযেন সদয,
সেই পায তাঙ্হার চরণ
ऐछे प्रभु शची - घरे, कृपाय कैल अवतारे
येइ इहा करये श्रवण ।
गौर - प्रभु दयामय, ताँरे हयेन सदय
सेइ पाय ताँहार चरण ॥122॥
 
अनुवाद
इस प्रकार से श्री चैतन्य महाप्रभु अपनी अहैतुकी कृपा से शची देवी के घर में अवतारित हुए। चैतन्य महाप्रभु उस किसी भी व्यक्ति पर बहुत दयालु होते हैं, जो उनके जन्म की इस कथा को सुनता है। ऐसा व्यक्ति महाप्रभु के चरणों में स्थान पाता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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