श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 13: श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव  »  श्लोक 103
 
 
श्लोक  1.13.103 
এই মত ভক্ত-ততি, যাঙ্র যেই দেশে স্থিতি,
তাহাঙ্ তাহাঙ্ পাঞা মনো-বলে
নাচে, করে সঙ্কীর্তন, আনন্দে বিহ্বল মন,
দান করে গ্রহণের ছলে
एइ मत भक्त - तति, याँर येइ देशे स्थिति ,
ताहाँ ताहाँ पाञा मनो - बले ।
नाचे, करे सङ्कीर्तन, आनन्दे विह्वल मन ,
दान करे ग्रहणेर छले ॥103॥
 
अनुवाद
इस प्रकार सारे भक्तगण, चाहे वो जहाँ भी हों, जिस भी नगर या देश में हों, सबके सब चंद्रग्रहण के बहाने नाचने लगे, संकीर्तन करने लगे और अपने मनोबल से दान करने लगे। उन सबके मन प्रसन्नता से भर गए थे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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