श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 13: श्री चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव » श्लोक 100 |
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| | श्लोक 1.13.100  | দেখি’ উপরাগ হাসি’, শীঘ্র গঙ্গা-ঘাটে আসি’
আনন্দে করিল গঙ্গা-স্নান
পাঞা উপরাগ-ছলে, আপনার মনো-বলে,
ব্রাহ্মণেরে দিল নানা দান | देखि’ उपराग हा सि’, शीघ्र गङ्गा - घाटे आ सि’
आनन्दे करिल गङ्गा - स्नान ।
पाञा उपराग - छले, आपनार मनो - बले,
ब्राह्मणेरे दिल नाना दान ॥100॥ | | अनुवाद | चन्द्र ग्रहण को देखकर और हँसते हुए अद्वैत आचार्य और हरिदास ठाकुर तुरन्त ही गंगा नदी के किनारे गये और बड़े हर्ष के साथ उन्होंने गंगा में स्नान किया। चन्द्र ग्रहण के अवसर का लाभ उठाकर अद्वैत आचार्य ने अपनी मानसिक शक्ति के द्वारा ब्राह्मणों को विभिन्न प्रकार के दान दिये। | | |
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