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श्लोक 1.12.94  |
গৌর-লীলামৃত-সিন্ধু — অপার অগাধ
কে করিতে পারে তাহাঙ্ অবগাহ-সাধ |
गौर - लीलामृत - सिन्धु अपार अगाध ।
के करिते पारे ताहाँ अवगाह - साध ॥94॥ |
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अनुवाद |
श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का सागर नापने का साहस कोई नहीं कर सकता। यह सागर इतना विशाल और गहरा है कि कोई भी इसकी थाह नहीं पा सकता। |
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