श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 12: अद्वैत आचार्य तथा गदाधर पण्डित के विस्तार  »  श्लोक 78
 
 
श्लोक  1.12.78 
শাখা-উপশাখা, তার নাহিক গণন
কিছু-মাত্র কহি’ করি দিগ্-দরশন
शाखा - उपशाखा, तार नाहिक गणन ।
किछु - मात्र क हि’ करि दिग्दरशन ॥78॥
 
अनुवाद
अद्वैत आचार्य की बहुतायत शाखाएँ और उपशाखाएँ हैं। उन सबकी पूर्ण रूप से गणना कर पाना बहुत कठिन है। मैंने तो बस पूरे तने और उसकी शाखाओं-उपशाखाओं की एक झलक मात्र प्रस्तुत की है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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