श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 12: अद्वैत आचार्य तथा गदाधर पण्डित के विस्तार » श्लोक 72 |
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| | श्लोक 1.12.72  | কি পণ্ডিত, কি তপস্বী, কিবা গৃহী, যতি
চৈতন্য-বিমুখ যেই, তার এই গতি | कि पण्डित, कि तपस्वी, किबा गृही, यति ।
चैतन्य - विमुख येइ, तार एइ गति ॥72॥ | | अनुवाद | चाहे कोई विद्वान पंडित हो, महान तपस्वी हो, सफल गृहस्थ अथवा प्रसिद्ध संन्यासी हो, किन्तु यदि वह चैतन्य महाप्रभु के सम्प्रदाय के विरुद्ध हैं, तो उसे यमराज द्वारा मिलने वाले दंड को अवश्य ही भुगतना पड़ेगा। | | |
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