श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 12: अद्वैत आचार्य तथा गदाधर पण्डित के विस्तार  »  श्लोक 56
 
 
श्लोक  1.12.56 
শ্রী-যদুনন্দনাচার্য — অদ্বৈতের শাখা
তাঙ্র শাখা-উপশাখার নাহি হয লেখা
श्री - यदुनन्दनाचार्य - अद्वैतेर शाखा ।
ताँर शाखा - उपशाखार नाहि हय लेखा ॥56॥
 
अनुवाद
अद्वैत आचार्य की पांचवीं शाखा श्री यदुनंदन आचार्य थे। उनके अनुयायियों की संख्या इतनी अधिक थी और उनकी शाखाओं और उपशाखाओं की संख्या भी इतनी अधिक थी कि उन सबका वर्णन करना असंभव है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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