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श्लोक 1.12.56  |
শ্রী-যদুনন্দনাচার্য — অদ্বৈতের শাখা
তাঙ্র শাখা-উপশাখার নাহি হয লেখা |
श्री - यदुनन्दनाचार्य - अद्वैतेर शाखा ।
ताँर शाखा - उपशाखार नाहि हय लेखा ॥56॥ |
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अनुवाद |
अद्वैत आचार्य की पांचवीं शाखा श्री यदुनंदन आचार्य थे। उनके अनुयायियों की संख्या इतनी अधिक थी और उनकी शाखाओं और उपशाखाओं की संख्या भी इतनी अधिक थी कि उन सबका वर्णन करना असंभव है। |
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