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श्लोक 1.12.55  |
এই ত’ প্রস্তাবে আছে বহুত বিচার
গ্রন্থ-বাহুল্য-ভযে নারি লিখিবার |
एइ त’ प्रस्तावे आछे बहुत विचार ।
ग्रन्थ - बाहुल्य - भये नारि लिखिबार ॥55॥ |
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अनुवाद |
इस कथन में कई गुह्य विचार हैं। मैं उन सभी को नहीं लिख रहा हूँ, क्योंकि इससे पुस्तक के अनावश्यक रूप से बढ़ जाने का भय है। |
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