प्रतिग्रह कभु ना करिबे राज - धन ।
विषयीर अन्न खाइले दुष्ट हय मन ॥50॥
अनुवाद
मेरे गुरु अद्वैत आचार्य को उन धनाढ्य लोगों या राजाओं से कभी भी दान स्वीकार नहीं करना चाहिए, जिन्हें भौतिक समृद्धि और सत्ता की लालसा है। क्योंकि यदि कोई गुरु अनाज या धन को उनसे स्वीकार करता है, तो उसका मन दूषित हो जाता है।