श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 12: अद्वैत आचार्य तथा गदाधर पण्डित के विस्तार  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  1.12.48 
শুনিযা প্রভুর মন প্রসন্ন হ-ইল
দুঙ্হার অন্তর-কথা দুঙ্হে সে জানিল
शुनिया प्रभुर मन प्रसन्न हइल ।
दुँहार अन्तर - कथा दुँहे से जानिल ॥48॥
 
अनुवाद
जब चैतन्य महाप्रभु ने यह सुना, तो उनका चित्त तुष्ट हुआ। केवल वही एक दूसरे के मन की समझ रख सकते थे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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