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अध्याय 12: अद्वैत आचार्य तथा गदाधर पण्डित के विस्तार
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श्लोक 47
श्लोक
1.12.47
আচার্য কহে, ইহাকে কেনে দিলে দরশন
দুই প্রকারেতে করে মোরে বিডম্বন
आचार्य कहे, इहाके केने दिले दरशन ।
दुइ प्रकारेते करे मोरे विड़म्बन ॥47॥
अनुवाद
तब अद्वैत आचार्यजी ने चैतन्य महाप्रभु से कहा, “आपने फिर से इस व्यक्ति को क्यों बुलाया और उसे दर्शन दिए? उसने मुझे दो तरह से धोखा दिया है।”
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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