श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 12: अद्वैत आचार्य तथा गदाधर पण्डित के विस्तार  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  1.12.41 
দণ্ড পাঞা হৈল মোর পরম আনন্দ
যে দণ্ড পাইল ভাগ্যবান্ শ্রী-মুকুন্দ
दण्ड पाना हैल मोर परम आनन्द ।
ये दण्ड पाइल भाग्यवान्श्री - मुकुन्द ॥41॥
 
अनुवाद
“चैतन्य महाप्रभु के द्वारा सज़ा देने पर मुझे बहुत खुशी हुई कि मुझे भी श्री मुकुन्द जैसा ही दंड मिला है।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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