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श्लोक 37
श्लोक
1.12.37
দণ্ড শুনি’ ‘বিশ্বাস’ হ-ইল পরম দুঃখিত
শুনিযা প্রভুর দণ্ড আচার্য হর্ষিত
दण्ड शुनि’ ‘विश्वास’ हइल परम दुःखित ।
शुनिया प्रभुर दण्ड आचार्य हर्षित ॥37॥
अनुवाद
जब कमलाकान्त विश्वास ने श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा दिये गए इस दंड के विषय में सुना, तो वे बहुत ही दुखी हुए। किंतु, जब अद्वैत प्रभु ने इसके बारे में सुना, तो वे अति प्रसन्न हुए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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