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श्लोक 1.12.32  |
কিন্তু তাঙ্র দৈবে কিছু হ-ইযাছে ঋণ
ঋণ শোধিবারে চাহি তঙ্কা শত-তিন |
किन्तु ताँर दैवे किछु हइयाछे ऋण ।
ऋण शोधिबारे चाहि तङ्का शत - तिन ॥32॥ |
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अनुवाद |
लेकिन साथ ही यह भी लिखा था कि अद्वैत आचार्य पर हाल ही में लगभग तीन सौ रुपये का ऋण हो गया था और कमलाकान्त विश्वास उसे चुकाना चाहते थे। |
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