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श्लोक 1.11.61  |
শ্রী-রূপ-রঘুনাথ-পদে যার আশ
চৈতন্য-চরিতামৃত কহে কৃষ্ণদাস |
श्री - रूप - रघुनाथ - पदे यार आश ।
चैतन्य - चरितामृत कहे कृष्णदास ॥61॥ |
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अनुवाद |
श्री रूप तथा श्री रघुनाथ के उद्देश्य की पूर्ति की प्रबल इच्छा से मैं कृष्णदास उनके चरण चिह्नों पर चलते हुए श्री चैतन्य - चरितामृत का वर्णन कर रहा हूँ। |
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इस प्रकार श्री चैतन्य-चरितामृत, आदि लीला, के अंतर्गत ग्यारहवाँ अध्याय समाप्त होता है । |
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