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श्लोक 1.11.60  |
সঙ্ক্ষেপে কহিলাঙ্ এই নিত্যানন্দ-গণ
যাঙ্হার অবধি না পায ‘সহস্র-বদন’ |
सङ्क्षेपे कहिलाँ एइ नित्यानन्द - गण ।
याँहार अवधि ना पाय ‘सहस्र - वदन’ ॥60॥ |
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अनुवाद |
मैंने श्री नित्यानंद प्रभु के अनुयायियों और भक्तों में से कुछ का ही संक्षेप में वर्णन किया है। इन अनंत भक्तों का वर्णन हज़ार मुंह वाले शेषनाग भी नहीं कर सकते। |
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