श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 11: भगवान् नित्यानन्द के विस्तार » श्लोक 51 |
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| | श्लोक 1.11.51  | কṁসারি সেন, রামসেন, রামচন্দ্র কবিরাজ
গোবিন্দ, শ্রীরঙ্গ, মুকুন্দ, তিন কবিরাজ | कंसारि सेन, रामसेन, रामचन्द्र कविराज ।
गोविन्द, श्रीरङ्ग, मुकुन्द, तिन कविराज ॥51॥ | | अनुवाद | श्री नित्यानन्द के पचपनवें महान् भक्त कंसारि सेन थे, छप्पनवें राम सेन थे, सत्तावनवें रामचन्द्र कविराज थे और अट्ठावनवें, उनसठवें और सत्तरवें भक्त गोविन्द, श्रीरंग और मुकुन्द थे जो सभी वैद्य थे। | | |
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