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श्लोक 1.11.45  |
পরমানন্দ গুপ্ত — কৃষ্ণ-ভক্ত মহামতী
পূর্বে যাঙ্র ঘরে নিত্যানন্দের বসতি |
परमानन्द गुप्त - कृष्ण - भक्त महामती ।
पूर्वे याँर घरे नित्यानन्देर वसति ॥45॥ |
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अनुवाद |
नित्यानन्द प्रभु के ३१वें भक्त श्री परमानन्द गुप्त कृष्ण भक्त थे, जो कृष्ण भक्ति में लीन रहते थे और आध्यात्मिक अनुभूति में बड़े ही महान थे | नित्यानन्द प्रभु पहले कुछ काल तक उनके घर भी रहे थे | |
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