श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 11: भगवान् नित्यानन्द के विस्तार  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  1.11.30 
জগদীশ পণ্ডিত হয জগত্-পাবন
কৃষ্ণ-প্রেমামৃত বর্ষে, যেন বর্ষা ঘন
जगदीश पण्डित हय जगत्पावन ।
कृष्ण - प्रेमामृत वर्षे, येन वर्षा घन ॥30॥
 
अनुवाद
भगवान नित्यानंद के अनुयायियों की पंद्रहवीं शाखा के जगदीश पंडित पूरी दुनिया के उद्धारक थे। उनसे कृष्ण भक्ति का प्रेम एक झरने की तरह बरसता था।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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