श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 11: भगवान् नित्यानन्द के विस्तार » श्लोक 26 |
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| | श्लोक 1.11.26  | গৌরীদাস পণ্ডিত যাঙ্র প্রেমোদ্দণ্ড-ভক্তি
কৃষ্ণ-প্রেমা দিতে, নিতে, ধরে মহাশক্তি | गौरीदास पण्डित याँर प्रेमोद्दण्ड - भक्ति ।
कृष्ण - प्रेमा दिते, निते, धरे महाशक्ति ॥26॥ | | अनुवाद | ईश्वर के प्रेम में सर्वोच्च भक्ति के प्रतीक गौरीदास पंडित में ऐसा प्रेम प्राप्त करने और उसे प्रदान करने की शक्ति सर्वोच्च थी। | | |
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