श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 11: भगवान् नित्यानन्द के विस्तार » श्लोक 16 |
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| | श्लोक 1.11.16  | রামদাস — মুখ্য-শাখা, সখ্য-প্রেম-রাশি
ষোলসাঙ্গের কাষ্ঠ যেই তুলি’ কৈল বṁশী | रामदास - मुख्य - शाखा, सख्य - प्रेम - राशि ।
षोलसाङ्गेर काष्ठ येइ तुलि’ कैल वंशी ॥16॥ | | अनुवाद | शाखाओं में से एक प्रमुख शाखा, राम दास भगवान् की सखा भावना से भरे हुए थे। उन्होंने सोलह गाँठों वाली काष्ठ की एक बाँसुरी बना ली थी। | | |
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