श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 10: चैतन्य-वृक्ष के स्कन्ध, शाखाएँ तथा उपशाखाएँ  »  श्लोक 97
 
 
श्लोक  1.10.97 
মহাপ্রভুর লীলা যত বাহির-অন্তর
দুই ভাই তাঙ্র মুখে শুনে নিরন্তর
महाप्रभुर लीला यत बाहिर - अन्तर ।
दुइ भाइ ताँर मुखे शुने निरन्तर ॥97॥
 
अनुवाद
चूंकि रघुनाथ दास गोस्वामी, स्वरूप दामोदर के सहयोगी थे, अत: वे भगवान चैतन्य की लीलाओं के बाहरी और भीतरी पहलुओं को भली-भाँति जानते थे। इस प्रकार, दोनों भाई रूप और सनातन हमेशा उनसे इसके बारे में सुनते रहते थे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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