মহাপ্রভুর লীলা যত বাহির-অন্তর
দুই ভাই তাঙ্র মুখে শুনে নিরন্তর
महाप्रभुर लीला यत बाहिर - अन्तर ।
दुइ भाइ ताँर मुखे शुने निरन्तर ॥97॥
अनुवाद
चूंकि रघुनाथ दास गोस्वामी, स्वरूप दामोदर के सहयोगी थे, अत: वे भगवान चैतन्य की लीलाओं के बाहरी और भीतरी पहलुओं को भली-भाँति जानते थे। इस प्रकार, दोनों भाई रूप और सनातन हमेशा उनसे इसके बारे में सुनते रहते थे।