श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 10: चैतन्य-वृक्ष के स्कन्ध, शाखाएँ तथा उपशाखाएँ » श्लोक 56 |
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| | श्लोक 1.10.56  | ভক্তে কৃপা করেন প্রভু এ-তিন স্বরূপে
‘সাক্ষাত্,’ ‘আবেশ’ আর ‘আবির্ভাব’-রূপে | भक्ते कृपा करेन प्रभु ए - तिन स्वरूपे ।
‘साक्षात्,’ ‘आवेश’ आर ‘आविर्भाव’ - रूपे ॥56॥ | | अनुवाद | भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु अपने भक्तों पर तीन रूपों में अकारण कृपा बरसाते हैं - अपने स्वयं के प्रत्यक्ष प्रकटन [साक्षात्] द्वारा, किसी शक्ति प्रदत्त व्यक्ति के भीतर अपने पराक्रम [आवेश] द्वारा तथा अपने आविर्भाव [प्रकट होने] द्वारा। | | |
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