श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 10: चैतन्य-वृक्ष के स्कन्ध, शाखाएँ तथा उपशाखाएँ » श्लोक 54 |
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| | श्लोक 1.10.54  | শিবানন্দ সেন — প্রভুর ভৃত্য অন্তরঙ্গ
প্রভু-স্থানে যাইতে সবে লযেন যাঙ্র সঙ্গ | शिवानन्द सेन - प्रभुर भृत्य अन्तरङ्ग ।
प्रभु - स्थाने याइते सबे लयेन याँर सङ्ग ॥54॥ | | अनुवाद | चैतन्य महाप्रभु के अत्यंत विश्वासपात्र सेवक और वृक्ष की चौबीसवीं शाखा, शिवानंद सेन थे। जो कोई भी भगवान चैतन्य से मिलने जगन्नाथ पुरी जाता था, वह श्री शिवानंद सेन से शरण और मार्गदर्शन लेता था। | | |
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