श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 10: चैतन्य-वृक्ष के स्कन्ध, शाखाएँ तथा उपशाखाएँ » श्लोक 44 |
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| | श्लोक 1.10.44  | তাঙ্হার অনন্ত গুণ — কহি দিঙ্মাত্র
আচার্য গোসাঞি যাঙ্রে ভুঞ্জায শ্রাদ্ধ-পাত্র | ताँहार अनन्त गुण - कहि दिंमात्र ।
आचार्य गोसाञि याँरे भुञ्जाय श्राद्ध - पात्र ॥44॥ | | अनुवाद | हरिदास ठाकुर के गुणों का कोई इंतहा नहीं था। मैं यहाँ उनके गुणों के एक छोटे से हिस्से का ही जिक्र कर रहा हूँ। वो इतने महान थे कि अद्वैत गोस्वामी ने अपने पिता की श्राद्ध-विधि में उन्हें पहली थाली भेंट की थी। | | |
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