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श्लोक 41
श्लोक
1.10.41
বাসুদেব দত্ত — প্রভুর ভৃত্য মহাশয
সহস্র-মুখে যাঙ্র গুণ কহিলে না হয
वासुदेव दत्त - प्रभुर भृत्य महाशय ।
सहस्र - मुखे याँर गुण कहिले ना हय ॥41॥
अनुवाद
श्री चैतन्य वृक्ष की उन्नीसवीं शाखा, वासुदेव दत्त, एक महान व्यक्तित्व और भगवान के सबसे अंतरंग भक्त थे। उनके गुणों को हजारों मुँहों से भी नहीं बताया जा सकता।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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