श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 10: चैतन्य-वृक्ष के स्कन्ध, शाखाएँ तथा उपशाखाएँ  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  1.10.32 
দণ্ড-কথা কহিব আগে বিস্তার করিযা
দণ্ডে তুষ্ট প্রভু তাঙ্রে পাঠাইলা নদীযা
दण्ड - कथा कहिब आगे विस्तार करिया ।
दण्डे तुष्ट प्रभु ताँरे पाठाइला नदीया ॥32॥
 
अनुवाद
चैतन्य - चरितामृत में बाद में मैं इस दण्ड - वृत्तान्त का वर्णन विस्तार से करूँगा। प्रभु इस दण्ड से बहुत संतुष्ट हुए, और दामोदर पण्डित को नवद्वीप भेज दिया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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