তাঙ্র স্থানে রূপ-গোসাঞি শুনেন ভাগবত
প্রভুর কৃপায তেঙ্হো কৃষ্ণ-প্রেমে মত্ত
ताँर स्थाने रूप - गोसाञि शुनेन भागवत ।
प्रभुर कृपाय तेंहो कृष्ण - प्रेमे मत्त ॥158॥
अनुवाद
श्रील रूप गोस्वामी के साथ रहने के दौरान, उनका एक ही काम था- उन्हें श्रीमद्भागवत सुनाकर सुनाना। इस भागवत-पाठ से उन्हें कृष्ण-प्रेम की पूर्णता प्राप्त हुई, जिसके कारण वे सदैव उन्मत्त रहते थे।