श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 10: चैतन्य-वृक्ष के स्कन्ध, शाखाएँ तथा उपशाखाएँ » श्लोक 140 |
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| | श्लोक 1.10.140  | গুরুর সম্বন্ধে মান্য কৈল দুঙ্হাকারে
তাঙ্র আজ্ঞা মানি’ সেবা দিলেন দোঙ্হারে | गुरुर सम्बन्धे मान्य कैल दुँहाकारे ।
ताँर आज्ञा मा नि’ सेवा दिलेन दोंहारे ॥140॥ | | अनुवाद | काशीश्वर और गोविन्द दोनों श्री चैतन्य महाप्रभु के गुरुभाई थे, इसलिए जब वे आये तो महाप्रभु ने उनका खूब सत्कार किया। लेकिन चूँकि ईश्वर पुरी ने उन्हें आदेश दिया था कि वे चैतन्य महाप्रभु की व्यक्तिगत सेवा करें, अतः महाप्रभु ने उनकी सेवा स्वीकार कर ली। | | |
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